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भौतिक ऊर्जा और प्राण ऊर्जा में अन्तर

मानव शरीर में उपलब्ध ऊर्जाओं को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम चैतन्य या प्राण ऊर्जा एवं दूसरी भौतिक या जड़ ऊर्जा। जिस ऊर्जा के निर्माण, वितरण, संचालन और नियंत्रण हेतु चेतना की उपस्थिति आवश्यक होती है, उस ऊर्जा को प्राण ऊर्जा कहते हैं। शरीर में आत्मा अथवा चेतना की अनुपस्थिति अर्थात् मृत्यु के पश्चात् प्राण ऊर्जा के अभाव में अचेतन शरीर का कोई महत्त्व नहीं होता। उल्टे उसकी उपस्थिति वातावरण को प्रदूषित करने लगती है। चैतन्य ऊर्जा के अभाव में  आज का विकसित विज्ञान जड़ पदार्थों से रक्त, कोषिकाओं जैसे साधारण अवयवों का निर्माण करने में अपने आपको असमर्थ मान रहा है। अतः स्पष्ट है कि जो साधन प्राण ऊर्जा के संरक्षण और विकास में सहयोग करते हैं, सभी स्तर के रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम होते हैं तथा जितना ज्यादा प्राण ऊर्जा का अनावश्यक दुरुपयोग अथवा अपव्यय होगा, हम रोगों को आमंत्रित करेंगे। प्राण अमूल्य है, अतः हमें स्वयं के प्राणों की रक्षा के साथ अन्य प्राणियों की हत्या में सहयोगी नहीं बनना चाहिए।

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