व्यक्ति की संवेदनाओं, आवेगों, तनाव आदि से अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ प्रभावित होती है, जिससे शरीर की सभी क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं में प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है। इसी कारण शरीर का रासायनिक स्वरूप कभी स्थिर नहीं रहता। प्रतिक्षण बदलता रहता है। यही कारण है कि किसी भी व्यक्ति के अलग-अलग समय पर कराये गये मल, मूत्र, रक्त, ई.सी.जी. आदि की पैथोलोजिकल टेस्ट रिर्पोट निरन्तर बदलती रहती है। अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में निदान का यही मूलाधार है। जब आधार ही बदलता रहे तो उन पर आधारित उपचार कैसे सही, पूर्ण, स्थायी और प्रभावशाली एवं दुष्प्रभावों से रहित हो सकता है?
Related Articles
उपचार हेतु रोगी की प्राथमिकताएँ
Check Also
अच्छे स्वास्थ्य के मापदण्ड – स्वस्थ कौन?
स्वस्थ का अर्थ होता है स्व में स्थित हो जाना। अर्थात् स्वयं पर स्वयं का …