अच्छे चिकित्सक का प्रयास रोगी को जागृत करने का होता है। उसका मनोबल, आत्मबल और सद्विवेक जाग्रत कर रोगी को उसकी क्षमताओं से परिचय कराने का होता है। सभी रोगी एक जैसे नहीं होते और न सभी रोगी अच्छे से अच्छे डाँक्टर से ठीक भी होते हैं।
जिसके अन्दर का तत्त्व जितना-जितना जाग्रत होता है, उतना-उतना उस पर उपचार का प्रभाव पड़ता है। अतः अच्छे चिकित्सक को, रोगी को रोग से साक्षात्कार कराना चाहिए। रोग के मूल कारणों को समझ उनसे बचने हेतु प्रेरित करना चाहिए। रोगी से तालमेल (Tuning) करनी होगी। रोग का प्रभाव पहले मस्तिष्क में होता है एवं उसके पश्चात् उसकी अभिव्यक्ति शरीर पर होती है। प्रायः हम देखते हैं, जब कोई नुकसान होता है तो मस्तिष्क उस हानि का आंकलन करता है। तत्पश्चात् उसके अनुरूप प्रायः व्यक्ति को दुःख होता है, अथवा क्रोध आता है। जैसे जब कोई बुद्धिमान, समझदार व्यक्ति बचकानी हरकत अथवा अनहोनी शारीरिक चेष्टाएँ करता है तो मस्तिष्क की प्रतिक्रियानुसार हमें हँसी आती है, जबकि यदि कोई बच्चा वैसा ही आचरण करता है तो हमारा ध्यान उस पर नहीं जाता है, और न हम किसी प्रकार की प्रतिक्रियाएँ ही करते हैं। अतः जो रोगी चिकित्सा के प्रति जितना सजग होगा, समर्पित होगा, चिन्तनशील होगा, उपचार के साथ अपनी मानसिकता, विवेक, विश्वास, भागीदारी रखेगा, उतना ही उपचार प्रभावशाली होगा। असजगता और शंकाशीलता उपचार के प्रभाव को घटाते हैं।