अधिकांश चिकित्सा पद्धतियाँ शरीर में विजातीय तत्त्वों की उपस्थिति को ही रोगों का एक मात्र कारण मानती है। आत्मिक विजातीय तत्त्वों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता। शरीर जड़ है। अतः बाजार से मिलने वाली दवाइयाँ अन्य खाद्य पदार्थ और भौतिक उपकरणों की मदद से जड़ ऊर्जा तो मिल सकती है, पर प्राण ऊर्जा नहीं। ऐसी चिकित्सा पद्धतियाँ अधिक से अधिक शरीर को ठीक कर सकती है। आत्मिक विकार स्वाध्याय, ध्यान, सम्यक् चिन्तन कषाय की मंदता एवं समतामय जीवन शैली से कम होते हैं। मानसिक व आत्मिक रोगों का उपचार तो स्वयं की चेतना से उत्पन्न प्राण ऊर्जाओं से ही संभव हो सकता है। प्रत्यक्ष या परोक्ष हिंसा को प्रोत्साहन देने वाली चिकित्सा पद्धतियाँ प्राण ऊर्जा का असंतुलन ही करती है, अतः रोगी को स्थायी रूप से रोग मुक्त नहीं बना सकती।