जो जन्म लेता है, वह एक दिन अवश्य मरता है, परन्तु कौन, कब, कहाँ और कैसे मरेगा? आज का चिकित्सा विज्ञान अथवा अनुभवी चिकित्सक भी बतलाने में असमर्थ हैं। एक जैसी घटना का प्रभाव सभी पर एक जैसा क्यों नही पड़ता? एक व्यक्ति साधारण सी प्रतिकूलता, रोग आदि में विचलित हो जाता है, जबकि दूसरा विकटतम परिस्थितियों, असाध्य एवं संक्रामक रोगों अथवा कष्ट के समय भी विचलित क्यों नहीं होता? आत्मा पर लिप्त कर्मों के अनुसार ही प्राणि मात्र को वातावरण और परिस्थितियाँ मिलती है। शरीर, मन और भावों की स्थिति बनती है। जिसकी अभिव्यक्ति वाणी द्वारा और शरीर में अवयवों के परिवर्तन के रूप में होती है और अन्त में रोगों का कारण।
दुनियाँ में कोई दो व्यक्ति पूर्ण रूप से शतप्रतिशत एक जैसे क्यों नहीं होते? सभी व्यक्तियों का आयुष्य समान क्यों नहीं होता? सभी व्यक्तियों की मृत्यु का ढंग एक जैसा क्यों नहीं होता? कोई लम्बे समय तक असाध्य रोग से पीडि़त होने के बावजूद, दिनरात तड़पते हुए तथा मृत्यु की चाहना करते हुए भी क्यों नहीं मरता? इसके विपरीत कभी-कभी बाह्य रूप से पूर्ण स्वस्थ दिखने वाले, कभी-कभी चन्द क्षणों पश्चात् ही संसार से विदा क्यों हो जाते हैं? हमारी आयु का निर्धारण कैसे होता है? उसका निर्धारण कौन और कब करता है? उसके निर्धारण का क्या आधार अथवा मापदण्ड होता है? अनुभवी ज्योतिष शास्त्री जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की पूर्व में जानकारी कैसे देते हैं? क्या आज के चिकित्सक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में ऐसी जानकारी बाल्यकाल में ही देने का दावा कर सकते है? जन्म से ही कोई व्यक्ति नेत्रहीन, बहरा, मूक, विकलांग अथवा असाध्य रोगों से कभी-कभी क्यों पीडि़त होता है? इसके विपरीत चन्द व्यक्ति स्वस्थ और रोगमुक्त क्यों होते हैं? एक सम्पन्न परिवार में जन्म लेता है, दूसरा अभावग्रस्त परिवार में क्यों? एक को अच्छा, उच्च कुल मिलता है, दूसरा नीच कुल में क्यों जन्म लेता है? एक की बुद्धि, प्रज्ञा प्रखर होती है तो अन्य अज्ञानी, मूर्ख अथवा अल्प बुद्धि वाला क्यों होता है? एक सत्याग्रही होता है तो दूसरा जानते, मानते हुए भी मिथ्या सोच अथवा दुराचरण वाला क्यों होता है? सुख-दुःख, संयोग-वियोग, अनुकूल-प्रतिकूल, अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों का संचालन व नियंत्रण कौन और कैसे करता है? सभी को एक जैसी परिस्थितियाँ और वातावरण क्यों नहीं मिलता? जिस प्रकार किसी कारखाने में निर्मित वस्तुओं का आकार, क्षमताएँ प्रायः एक जैसी होती है, वैसे ही सारे चेतनाशील प्राणी एक जैसे क्यों नहीं होते? सभी का स्वास्थ्य, चिन्तन, मनन, सोच, दृष्टिकोण भाग्य, क्षमताओं का विकास एक जैसा क्यों नहीं होता? हम जो भी कार्य या परिश्रम करते हैं, क्या उसका पूर्ण प्रतिफल हमेशा प्राप्त होता है? क्या कभी-कभी भाग्य से अपेक्षित पुरुषार्थ किए बिना किसी को पद, पैसा और सत्ता तो नहीं मिलती? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो आत्मा के अस्तित्व तथा उसको प्रभावित करने वाले कर्मों की सत्ता स्वीकार करने के लिए विवश करते हैं। हमारा जीवन कर्म की सीमाओं से बँधा हुआ होता है।