प्रकृति के कानून व्यक्तिगत अनुकूलताओं के आधार पर नहीं बदलते। जानवर आज भी बिना तर्क प्राकृतिक नियमों का पालन करते हैं। अतः उनको अपना जीवन चलाने के लिए प्रायः डाँक्टरों और दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु जो पशु मानव के सम्पर्क में आते हैं, उनके सम्पर्क में रहकर अपना नियमित आचारण बदल प्रकृति के विपरीत आचरण करते हैं, वे ही मानव की भाँति रोगग्रस्त होते हैं। अतः प्रकृति से सहयोग और तालमेल रख जीवन यापन ही स्वास्थ्य की कुंजी है। जितना-जितना प्रकृति के साथ तालमेल और सन्तुलन होगा, प्राणि मात्र के प्रति सद्भाव, मैत्री, करूणा, सहयोग का आचरण होगा, उतना-उतना हम स्वास्थ्य के समीप होंगे। हमारा स्वास्थ्य हमारे हाथ में है तो हमारे रोग भी हमारे हाथ में है। हम जैसा चाहें, वैसा आचरण करें, हमें स्वयं को ही फैसला करना है कि ‘‘हम रोगी बने अथवा स्वस्थ।’’