जन्म और मृत्यु के बीच की अवस्था का नाम जीवन है। जीवन को समझने से पूर्व जन्म और मृत्यु के कारणों को समझना आवश्यक होता है। जिसके कारण हमारा जीव विभिन्न योनियों में भ्रमण करता है। जन्म और मृत्यु क्यों? कब? कैसे और कहाँ होती है? उसका संचालन और नियन्त्रण कौन और कैसे करता है? सभी की जीवन शैली, प्रज्ञा, सोच, विवेक, भावना, संस्कार, प्राथमिकताएँ, उद्देश्य, आवश्यकताएँ आयुष्य और मृत्यु का कारण और ढंग एक-सा क्यों नहीं होता? मृत्यु के पश्चात् अच्छे से अच्छे चिकित्सक का प्रयास और जीवन दायिनी समझी जाने वाली दवाईयाँ क्यों प्रभावहीन हो जाती हैं? मृत्यु के पश्चात् मृत शरीर के कलेवर को क्यों जलाया, दफनाया अथवा अन्य किसी विधि द्वारा समाप्त किया जाता है?
शरीर का आत्मा के साथ संबंध ही जीवन है और वियोग मृत्यु है। मृत्यु के पश्चात् शरीर, इन्द्रिय एवं मन की भांति आत्मा का अंत नहीं होता। आत्मा के प्रति सजगता ही स्वास्थ्य का मूलाधार होता है। अतः जीवन में ऐसी सभी प्रवृत्तियों से बचने का प्रयास करें जिससे हमारी आत्मा अपवित्र न बने। मानव जीवन में आत्मा पर लगे विकारों को दूर कर परमात्मा बनने का प्रयास करना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। जिसके लिए जीवन में स्वाध्याय, ध्यान, कषायों की मंदता, सम्यक् चिंतन एवं संयमित, नियमित, सदाचरण युक्त जीवन शैली आवश्यक होती है।