भोजन क्या और कैसा हो?

(What should be our food?)

भोजन जीवन का आधार है। आधार हमेशा मजबूत होना चाहिए न कि मजबूरी, लापरवाही, अज्ञान अथवा अविवेक पूर्ण आचरण का।
भोजन कितना ही संतुलित, पौष्टिक, सुपाच्य, स्वास्थ्यवर्धक क्यों न हों, परन्तु यदि खिलानें वाले का व्यवहार अच्छा न हों, उपेक्षापूर्ण हों, वाणी में व्यंग और भाषा में अपमानजनक शब्दावली हों तो ऐसा भोजन भी अपेक्षित लाभ नहीं पहुँचा सकता।
भोजन को प्रसाद की भांति खाना चाहिए। खाया हुआ भोजन तीन भागों में विभक्त हो जाता है। स्थूल भाग मल बनता है, पोष्टिक तत्त्वों से शरीर के अवयवों का निर्माण होता है। अन्न के भावांश से मन बनता है।
पेट तो भोजन से भर सकता है, परन्तु मन तो भोजन बनाने और खिलाने वालों के भावों से ही भरता है। इसी कारण होटल के स्वादिष्ट खाने से पेट तो भर सकता है, परन्तु मन नहीं।
आधुनिक खान-पान की एक और विसंगति है कि जब शरीर श्रम करता है, तब उसे कम आहार दिया जाता है परन्तु जब वह विश्राम की अवस्था में होता है, तब उसे अधिक मात्रा में कैलोरीयुक्त आहार दिया जाता है। जैसे दिन का समय जो मेहनत परिश्रम का होता है तब तो हल्का भोजन, नाश्ता, चाय, काफी, ठंड़े पेय आदि कम कैलोरी वाले आहार करता है और रात्रि में जो विश्राम का समय होता है, प्रायः अधिकांश व्यक्ति गरिष्ठ भोजन करते हैं, जो स्वास्थ्य के मूल सिद्धान्तों के विपरीत होता है।
स्वाद के वशीभूत हो हम कभी-कभी अनावश्यक हानिकारक वस्तुएँ खाते हुए भी संकोच नहीं करते। भूख एवं आवश्यकता से ज्यादा भोजन कर लेते हैं। जीभ के स्वादवश अधिक आहार हो जाता है तो कभी अतिव्यस्तता के कारण भोजन ही छूट जाता है। अधिक खाना और न खाना दोनों स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
तामसिक भोजन करने वाला तामसिक वृत्तियों वाला होता है। तामसिक व्यक्ति शरीर के लिए जीता है। राजसिक भोजन से मन और बुद्धि चंचल होती है। राजसिक प्रवृत्ति वाले अत्यधिक महत्वकांक्षी होते हैं। अतः उन्हें उत्तेजना पैदा करने वाला भोजन अच्छा लगता है। सात्विक भोजन ही संतुलित होने से सर्व श्रेष्ठ होता है। भोजन के सम्बन्ध में हमारी प्राथमिकता क्या हो? जिस प्रकार बिना कपड़े पहने आभूषण पहिनने वालों पर दुनियाँ हँसती है। ठीक उसी प्रकार शरीर की पौष्टिकता के नाम पर मन, भाव और आत्मा को विकारी बनाने वाला भोजन अदूरदर्शितापूर्ण आचरण ही होता है।
अतः प्रत्येक स्वास्थ्य प्रेमी सजग व्यक्ति को भोजन कब, क्यों, कितना, कहाँ, कैसा करना चाहिए और कब, कहाँ, कैसा, कितना भोजन नहीं करना चाहिए का विवेक रखना चाहिए।