दुनियाँ में कभी भी दो व्यक्ति पूर्ण रूप से एक जैसे न तो कभी हुए हैं और न कभी भविष्य में एक जैसे हो सकते हैं। उनकी शारीरिक संरचना, स्वभाव, आसपास के वातावरण की प्रतिक्रिया, मानसिक और कायिक स्थिति कभी भी समान नहीं हो सकती है। कभी-कभी उनकी संरचना में बाह्य रूप से एकरूपता और समानता दिखने के बावजूद शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अवस्था में कुछ न कुछ तो अन्तर होता ही है। जब दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हो सकते हैं तो दो रोगी एक जैसे कैसे हो सकते हैं? प्रमुख रोग के लक्षण समान होने के बावजूद सहयोगी रोगों की स्थिति एक जैसे नहीं हो सकती। अर्थात् प्रत्येक रोगी में रोग का परिवार अर्थात् सहायक रोग अलग-अलग होते हैं। जब दो रोगी एक जैसे नहीं हो सकते हें तो उनका उपचार एक जैसा कैसे हो सकता है? प्रत्यक्ष में समान लक्षण दिखने वाले अथवा रासायनिक प्रयोगशालाओं में रक्त, मल, मूत्र के परीक्षण में समानता के लक्षण बतलाने वाले दो रोगी भी शत-प्रतिशत एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इसलिये उनका उपचार भी पूर्णतया एक जैसा कैसे हो सकता है? क्या बाजार में उपलब्ध दवाइयों अथवा इंजेक्शन रोगी विशेष के अनुरूप बनाये जाते हैं? जब तक दवा का निर्माण रोगी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होता है, तो उपचार कैसे पूर्ण, प्रभावशाली, स्थायी हो सकता है? मात्र प्रमुख लक्षणों को दबा कर रोग में राहत पाना ही उपचार का ध्येय नहीं होता।