स्वास्थ्य के संबंध में आज हमारी समस्त सोच का आधार जो प्रत्यक्ष हैं, जो तात्कालिक है, उसके आगे-पीछे प्रायः नहीं जाता। स्वस्थ रहने के लिए हमें रोग के होने के मूल कारणों को दूर करना होगा। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को क्षीण होने से बचाना होगा। जहां संयम है, सजगता है, समता है, स्वावलम्बन है, सम्यक् श्रम है, साधना है वहाँ विकारों का अभाव होता है। यही अच्छे स्वास्थ्य का द्योतक होता है। दुष्प्रभावों की चिन्ता छोड़ प्रभावशाली वैकल्पिक उपलब्ध साधनों की अनदेखी करने से, जीवन भर हम अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग नहीं ले पाते। अपने स्वजन और मित्रों को साधारण से रोग की अवस्था में भी अपनी मानसिकता के कारण अस्पताल ले जाना अपना कत्र्तव्य समझते हैं और जो ऐसा नहीं करते उन्हें हम मूर्ख, कंजूस, लापरवाह कहते हुए नहीं चूकते। इसके विपरीत रोग होने के कारणों की तरफ पूरा ध्यान नहीं देते।