‘प्रत्येक अच्छे स्वचलित यंत्र में खतरा उपस्थित होने पर स्वतः उसको ठीक करने की व्यवस्था प्रायः होती है। जैसे बिजली के उपकरणों के साथ ओवरलोड, शार्ट सर्किट, अर्थ फाल्ट आदि से सुरक्षा हेतु प्युज, रीलें आदि होते हैं। प्रत्येक वाहन में ब्रेक होता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर वाहन की गति को नियंत्रित किया जा सके। ठीक उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में जो दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ स्वचलित, स्वनियंत्रित मशीन होती है, उसमें रोगों से बचने की सुरक्षात्मक व्यवस्था न हों तथा रोग होने की अवस्था में पुनः स्वस्थ बनाने की व्यवस्था न हों, यह कैसे संभव हो सकता है?
स्वास्थ्य के लिए हमारे शरीर में समाधान हैं, प्रकृति में समाधान हैं, वातावरण में समाधान हैं। भोजन, पानी और हवा के सम्यक् उपयोग और विसर्जन में समाधान हैं। समाधान भरे पड़े हैं, परन्तु उस व्यक्ति के लिए कोई समाधान नहीं है, जिसमें अविवेक और अज्ञान भरा पड़ा है।
शरीर में हजारों रोग होते हैं, वे सभी यंत्रों और रासायनिक परीक्षणों की पकड़ में नहीं आ सकते। जो उनकी पकड़ में आ जाते हैं, उनको सभी डाँक्टर समझ नहीं सकते। सभी अपना अलग-अलग निष्कर्ष निकाल निदान करते हैं। अतः दवाओं द्वारा उपचार आंशिक ही होता है। इसी कारण बहुत से व्यक्ति उपचार करवाने के बावजूद पुनः स्वस्थ नहीं होते, जबकि, चन्द रोगी बिना उपचार करवाए, प्राकृतिक नियमों का पालन कर स्वतः स्वस्थ हो जाते हैं। शरीर में रोग के अनुकूल दवा बनाने की क्षमता होती है और यदि उन क्षमताओं को बिना किसी बाह्य दवा के विकसित कर दिया जाए तो उपचार अधिक प्रभावशाली , स्थायी एवं भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों से रहित होता है। दवा और चिकित्सक तो मात्र मार्गदर्शक अथवा सहायक की भूमिका निभा सकते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए स्वयं की सजगता, भागीदारी, जीवनचर्या एवं गतिविधियों पर पूर्ण संयम, अनुशासन और नियंत्रण आवश्यक होता है।