अध्यात्म से शून्य स्वास्थ्य विज्ञान अपूर्ण
जिस प्रकार बिजली का तार और उसमें प्रवाहित विद्युत अलग-अलग होती है। उसी प्रकार जड़ से संबंधित शरीर और चेतना से संबधित आत्मा अलग-अलग होती है। अतः दोनों से संबंधित ज्ञान का लक्ष्य भी अलग-अलग होता है।
जड़ विज्ञान का कार्य क्षेत्र होता है भौतिक विकास, भौतिक सफलताएँ, भौतिक उपलब्धियाँ आदि। उसका आधार होता है ! परावलम्बन, जबकि आध्यात्मिक विज्ञान से आत्म विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। उसका आधार होता है ! स्वावलम्बन अर्थात् स्वयं के द्वारा स्वयं का निरीक्षण, परीक्षण, नियंत्रण, संचालन। उसका परिणाम होता है आत्मानुभूति। मनोबल और आत्मबल का विकास, अर्थात् भौतिक विज्ञान व्यक्ति को विशिष्ट बनाता है, जबकि आध्यात्मिंक ज्ञान मानव को स्वाभाविक बनाता है।
भौतिक विज्ञान प्रयोग में विश्वास करता है, जबकि अध्यात्म विज्ञान योग में। विज्ञान शक्ति की खोज करता है, जबकि अध्यात्म शान्ति की।
जिस चिकित्सा में शारीरिक स्वास्थ्य ही प्रमुख हो, मन, भावों, अथवा आत्मा के विकार जो अधिक खतरनाक, हानिकारक होते हैं, गौण अथवा उपेक्षित होते हों या बढ़ते हो, ऐसी चिकित्सा पद्धतियों को वैज्ञानिक समझने वाले विज्ञान की बातें भले ही करते हों, विज्ञान के मूल सिद्धान्तों से अपरिचित लगते हैं। विज्ञान शब्द का अवमूल्यन करते हैं। सनातन सत्य पर आधारित प्राकृतिक सिद्धान्तों को नकारते है।
शरीर मात्र ढांचा ही नहीं, उसके साथ मन और आत्मा भी जुड़े हैं। मन और आत्मा का संचालन, नियन्त्रण चेतना से होता है। हमारी संवेदनाएँ, भाव, विचार,सोच, कर्म, नियति, स्वभाव, चिंतन, काल तथा जीवनचर्या आदि उसे प्रभावित करते हैं। आत्मिक बल को भौतिक यंत्रों से नहीं मापा जा सकता। इस कारण उस अनुभूत सत्य को नकारना, गलत, असत्य,अवैज्ञानिक तत्त्वहीन मानना कौनसी बुद्धिमता है? आत्मा को प्रभावित करने वाले तथ्यों की उपेक्षा करने वाला अपूर्ण ज्ञान अपने आपको कैसे पूर्ण प्रभावशाली स्वास्थ्य विज्ञान होने का दावा कर सकता है?