पशओं के प्रति क्रूरता न्याय संगत नहीं
अगर कोई मनुष्य को खा जाता है तो उसको नरभक्षी कहा जाता है। ऐसे जानवरों को लोग जिंदा नहीं रहने देते। परन्तु मांसाहारी जीवन-पर्यन्त कितने प्राणियों की हत्या कर खाता है, फिर भी ऐसे मानव को सभ्य, बुद्धिमान, सजग, नैतिक मानना क्या न्यायसंगत है?
मत सता जालिम किसी को, मत किसी की हाय ले।
दिल के दुःख जाने से जालिम, खाक में मिल जाएगा।।
मांसाहार स्वास्थ्य की दृष्टि से रोगों को आमंत्रित करने वाला, मानसिक दृष्टि से व्यक्ति को क्रूर, निर्दयी, विवेक शून्य बना दया, करूणा, अनुकंपा जैसे मानवीय गुणों को नष्ट करने वाला, आध्यात्मिक दृष्टि से नीच गति में ले जाने वाला, आर्थिक दृष्टि से महंगा, पर्यावरण की दृष्टि से प्रकृति में असंतुलन पैदा करने वाला, न्याय की दृष्टि से अन्याय एवं अत्याचार का पोषण करने वाला आहार है।
अर्थात् मांसाहार अप्राकृतिक है, असात्त्विक है, अमानवीय है, असांस्कृतिक है, असामाजिक है, असंवैधानिक है, अवैज्ञानिक है, अनैतिक है, अनावश्यक है। अतः मानवीय आहार कैसे हो सकता है?