रात्रि भोजन हानिकारक
रात्रि भोजन हानिकारक
(Night Eating is Harmful)
मच्छर रात्रि में ही क्यों प्रायः अधिक काटते हैं? क्या कभी हमने चिन्तन किया? सूर्यास्त होने के पश्चात् शरीर की प्रतिरोधक शक्ति क्यों कम हो जाती है? ऊर्जा शक्ति की हानि होने से रात्रि में किया गया भोजन कैसे शक्तिवर्द्धक हो सकता है?
सूर्य की रोशनी से शरीर में रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ती है। इसी कारण प्रायः अधिकांश रोगों का प्रकोप रात में बढ़ने लगता है। प्रत्येक बीमारी भी अपेक्षाकृत रात में ज्यादा कष्टदायक होती है। इसका मुख्य कारण रात में सूर्य की गर्मी का अभाव होता है।
हमारे शरीर में सारे ऊर्जा चक्र जिन्हें कमल की उपमा दी गयी है, सूर्योदय के साथ सक्रिय होते हैं और सूर्यास्त के पश्चात् असक्रिय होने लगते हैं। अतः रात्रि में भोजन का पाचन कठिनाई से होता है। आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि पहला मुख्य भोजन सूर्योदय से एक प्रहर बाद ही किया जाना चाहिये और दूसरा भोजन यदि आवश्यक हो तो सूर्यास्त से कम से कम एक घंटा पूर्व। उनका निष्कर्ष है कि दिन क्षय के अनुपात में वायु और पित्त बढ़ जाते हैं।
चरक संहिता के अनुसार रात्रि भोजन दूषित, तामसिक और अम्लीभूत होकर शरीर को भारी क्षति पहुँचाता है।
सूर्यास्त के पश्चात् बहुत से सूक्ष्म जीव पैदा हो जाते हैं। सूर्य का प्रकाश इन कीटाणुओं को पैदा होने से रोकता है। सूर्य के ताप में अनेक विषैले कीटाणु निष्क्रिय बन जाते हैं, जो सूर्यास्त के बाद पुनः सक्रिय होने लगते हैं। प्रायः हम अनुभव करते हैं कि, दिन में 1000 वाट के बल्ब के पास भी सूक्ष्म जीव नहीं आते, जबकि रात में थोड़ी सी रोशनी में भी बल्ब के आसपास मच्छर मंडराने लगते हैं। ये जीव आहार की गन्ध के कारण भोज्य पदार्थों की तरफ आकर्षित होते हैं। वहीं दूसरी तरफ भोजन में भी अनेक सूक्ष्म बेक्टीरियाँ उत्पन्न हो जाते हैं। इनका रंग भोजन के रंग जैसा ही होने से कृत्रिम प्रकाश में हम इन्हें प्रायः नहीं नहीं देख पाते हैं। कृत्रिम प्रकाश में उजाला तो है, परन्तु वह सूर्य की बराबरी नहीं कर सकता। पूर्ण शाकाहारियों के लिये यह भोजन निश्चित रूप से त्याज्य होता है। रात्रि में तमस (अँधेरे) के कारण वैसे भी भोजन तामसिक बन जाता है। रात्रि भोजन में स्मरण शक्ति कमजोर होने लगती हैं। व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पूर्ण रूपेण विकसित नहीं कर पाता।
बिजली की रोशनी में भोजन करने से अंधेरे के कीटाणु तो हमारे भोजन के नजदीक आते ही हैं परन्तु साथ में प्रकाश के किटाणु और नये उत्पन्न होते हैं, जो भोजन में सम्मलित हो जाते हैं, तथा जो स्वास्थ्य बिगाड़ने में सहायक होते हैं।
कहने का आशय यही है कि प्रकृति के नियम व्यक्तिगत अनुकूलताओं के आधार पर नहीं बदलते। हमारी जीवन पद्धति के अनुरूप सूर्योदय और सूर्यास्त का समय निश्चित् नहीं होता । बुद्धिमान वहीं है जो प्रकृति के अनुरूप अपने आपको ढाल लेता है। परन्तु आज हमारे दिल और दिमाग में ये बाते नहीं बैठ पा रही है। हमारे Lunch और Dinner रोगों के मंच बनते जा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय को पूर्वाग्रह छोड़ इस सत्य को स्वीकार करना चाहिये तथा भोजन के उपयुक्त सर्वोत्तम समय की जानकारी जन साधारण तक पहुँचानी चाहिये। सारी सामाजिक एवं सरकारी व्यवस्थाओं को उसके अनुरूप बदलने की पहल करनी चाहिये। यदि उचित समय पर भोजन न किया जाए तो हमें हमारी पाचन क्रिया को अच्छा रखने के लिये बाह्य साधनों का उपयोग करना पड़ेगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि रात्रि भोजन आरोग्य के साथ वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक दृष्टिकोण से अनुपयोगी है। हानिकारक है। प्रकृति के विरुद्ध है। अतः स्वास्थ्य प्रेमियों के लिये त्याज्य है तथा उन्हें यथा सम्भव दिन में सूर्यास्त से पूर्व ही भोजन करने का प्रयास करना चाहिये।