शाकाहार ही मानवीय आहार है
बुद्धिमान कौन?
मांसाहार स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक, आर्थिक दृष्टि से महंगा, आध्यात्मिक दृष्टि से नीच गति में ले जाने वाला, मानवीय गुणों का नाश करने वाला, पर्यावरण की दृष्टि से प्रकृति में असंतुलन पैदा करने वाला तथा न्याय की दृष्टि से अन्याय का पोषण करने वाला हैं।
अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला या उपेक्षा करने वाला? अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करने वाला अथवा दुरुपयोग करने वाला? दयालु या क्रूर, स्वार्थी अथवा परमार्थी? अहिंसक अथवा हिंसक, अन्य प्राणियों के प्रति मैत्री और प्रेम का आचरण करने वाला या द्वेष और घृणा फैलाने वाला? जीओ और जीने दो के सिद्धान्तों को मानने वाला या दूसरों को स्वार्थ हेतु कष्ट देने वाला, सताने वाला या नष्ट करने वाला? उपर्युक्त मापदण्डों के आधार पर ही मनुष्य को सभ्य, सजग, सदाचारी और बुद्धिमान अथवा असभ्य, असजग, दुराचारी और मूर्ख समझा जाता है। अपने-अपने खाने की आदतों के आधार पर हम स्वयं निर्णय करें कि हमारा खान-पान कितना बुद्धिमत्ता पूर्ण हैं?
जो मांसाहार करते हैं, करवाते हैं अथवा करने वालों को अच्छा समझते हैं, वे सभी असजग हैं। असंस्कारित है। अमानवीय हैं। अपनी रसनेन्द्रिय के गुलाम हैं। भ्रमित हैं। स्वयं के प्रति भी पूर्ण रूप से ईमानदार नहीं हैं। वास्तव में जो बुराई को जानते, मानते हुए भी न स्वीकारें अपितु आचरण कर प्रसन्न होंवे, उस व्यक्ति, समाज और सरकार को कैसे बुद्धिमान समझा जायें?