आज हमारी समस्त सोच का आधार भीड़ और विज्ञापन के साथ, जो प्रत्यक्ष हैं, जो तात्कालिक है, उसके आगे-पीछे प्रायः नहीं जाता। स्वस्थ रहने के लिए हमें रोग के मूल कारणों को दूर करना होगा। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को क्षीण होने से बचाना होगा। रोग निरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए सृष्टि के नियमों का पालन कर संयमित जीवन जीना होगा। जहाँ संयम है, सजगता है, समता है, स्वावलम्बन है, सम्यक् श्रम है, साधना है वहाँ विकारों का अभाव होता है। यही अच्छे स्वास्थ्य का द्योतक होता है। दुष्प्रभावों की चिन्ता छोड़ प्रभावशाली स्वावलंबी उपलब्ध साधनों की अनदेखी करने से, जीवन भर हम अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग नहीं ले पाते। अपने स्वजन और मित्रों को साधारण से रोग की अवस्था में भी अपनी मानसिकता के कारण अस्पताल ले जाना अपना कर्तव्य समझते हैं और जो ऐसा नहीं करते उन्हें हम मूर्ख, कंजूस, लापरवाह कहते हुए नहीं चूकते। इसके विपरीत रोग होने के कारणों की तरफ पूरा ध्यान नहीं देते।
ये बातें वर्तमान में हमारी धारणाओं और परिस्थितियों के अनुकूल हो अथवा नहीं, ये बातें हमें अच्छी लगें अथवा नहीं, प्रकृति के कानून व्यक्तिगत अनुकूलताओं के आधार पर नहीं बदलते। जानवर आज भी बिना तर्क प्राकृतिक नियमों का पालन करते हैं। अतः उनको अपना जीवन चलाने के लिए प्रायः डाँक्टरों और दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु जो पशु मानव के सम्पर्क में आते हैं, उनके सम्पर्क में रहकर अपना नियमित आचरण बदल प्रकृति के विपरीत आचरण करते हैं, वे ही मानव की भाँति रोगग्रस्त होते हैं। अतः प्रकृति से सहयोग और तालमेल रख जीवन व्यापन ही स्वास्थ्य की कुँजी है। जितना-जितना प्रकृति के साथ तालमेल और सन्तुलन होगा, प्राणि मात्र के प्रति सद्भाव, मैत्री, करूणा, सहयोग का आचरण होगा, उतना-उतना हम स्वास्थ्य के समीप होंगे। हमारा स्वास्थ्य हमारे हाथ में है तो हमारे रोग भी हमारे हाथ में हैं। हम जैसा चाहें, वैसा आचरण करें, हमें स्वयं को ही फैसला करना है कि ‘‘हम रोगी बने अथवा स्वस्थ।’’